सन्ता मिष्टान्नापणे अर्धकिलोमितं जलेबी-मिष्टं गृहीत्वा खादितवान्।
ततः धनमदत्त्वा निर्गन्तुमुद्यतः।
आपणिकः-- अरे, जलेबी-मिष्टस्य धनं देहि।
सन्ता-- धनं तु नास्ति, भ्रातः।
ततः आपणिकः सेवकमाहूय सन्तां ताडितवान्।
ताडनानन्तरं सन्ता समुत्थाय करचरणौ धूनयित्वा अवदत्--
इयता मूल्येनैव पुनः एककिलोमितं मिष्टं प्रदेहि।
संता ने एक हलवाई की दुकान पर आधा किलो जलेबी लेकर खाई
और बिना पैसे दिए जाने लगा।
दुकानदार--- "अरे जलेबी के पैसे तो दिए जा।"
संता--- "पैसे तो नहीं हैं, भाई।"
इस पर दूकानदार ने अपने नौकर को बुला कर संता की भरपूर पिटाई करवा दी।
पिटने के बाद संता उठा और हाथ पैर झाड़ते हुए बोला---
"इसी भाव पर एक किलो और तौल दे।"